________________ चिन्मात्रदीपको गच्छेत्, निर्वातस्थानसन्निभैः। निष्परिग्रहतास्थैर्य, धर्मोपकरणैरपि // 7 // सद्ज्ञान दीपक रूप मुनि अप्रमत्त होता सर्वदा। विरहित पवन के स्थान जैसे स्थिर बने रहते सदा॥ चारित्र में सहयोग हेतु पास होते उपकरण। फिर भी परिग्रह रहित ही है परम स्थिर वे साधुगण॥7॥ 'पवन रहित स्थान' रूप धर्म के उपकरणों से ज्ञान मात्र दीपक रूप (मुनि) परिग्रह त्याग रूप स्थिरता को प्राप्त करता है। * Like a lamp that burns steadily at a place having air without turbulance, a Sadhu remains steadfast in his detachment despite all amenities at his disposal just due to the absence of the desire for possesions. .{199)