________________ त्यक्ते परिग्रहे साधोः, प्रयाति सकलं रजः। पालित्यागे क्षणादेव, सरसः सलिलं यथा॥5॥ सरवर भरा है नीर से पर पाल जो टे यदा। पानी सकल बह जाय फिर इक बूंद भी न रहे तदा // परित्याग करते परिग्रह का सर्वथा त्यों साधु जब। परित्याग करते ही मुनि पल में विनाशे पाप सब // 5 // परिग्रह का त्याग करने से साधु का पाप रूपी मैल क्षण में ही नष्ट हो जाता है। जिस प्रकार पाल टूटने से तालाब का पानी चला जाता है। As when a dam is broken not a drop of water remains in the lake, likewise when the desire for possessions is subdued all the dirt of sins is washed in no time. (197)