________________ अतीन्द्रियं परं ब्रह्म, विशुद्धाउनुभवं विना। शास्त्रयुक्तिशतेनाऽपि, नगम्यं यद् बुधा जगुः // 3 // नहिं जान सकते इन्द्रियों से ऐसी अनुपम आतमा। शास्त्रों की युक्ति से भी जानी जा सके ना आतमा / पंडित सकल कहते कि तुमको प्राप्त करना आतमा। अनुभव बिना ना जान सकते ब्रह्म रूपी आतमा // 3 // सैकड़ों युक्तियों द्वारा भी इन्द्रियों द्वारा अगोचर ऐसा परमात्मा का स्वरूप शास्त्रों की सैकड़ों युक्तियों द्वारा भी नहीं जाना जा सकता, उसे मात्र अनुभव से ही जाना जा सकता है ऐसा पंडित कहते हैं। The senses are not adequate to enable one to understand the 'atman' or soul which is beyond compare. The logic of the shashtras too is not sufficient. Sages declare that it is impossible to understand the 'Brahma' like soul without direct . experience. {203}