________________ लोकसंज्ञाहता हन्त, नीचैर्गमनदर्शनैः / / शंसयन्ति स्वसत्याङ्ग-मर्मघातमहाव्यथाम्॥6॥ ज्यों जीव तन में दर्द हो तब मन्द गति से चालता। मुख निम्न कर यों प्रगट करता दर्द की घन दासता॥ निज सत्य व्रत को भंग करते लोकसंज्ञा के लिये। वे वेदना को प्रकट करते आत्म के बुझते दिये / / 6 // लोक संज्ञा से आहत हुए लोगों के धीरे चलने से व नीचे देखने से अपने सत्य व्रत रूप अंग में मर्म प्रहार की महा व्यथा प्रकट होती है। Just like a man in physical anguish moves slowly, his head bent,,so those who detract from the path of righteousness for the sake of popularity, appear to possess a soul dimmed with spiritual anguish. {182}