________________ अदृष्टार्थेऽनुधावन्तः, शास्त्रदीपं बिना जडाः / प्राप्नुवन्ति परं खेदं प्रस्खलन्तः पदे पदे॥5॥ दीपक बिना जो चल रहे वे ठोकरें ही खा रहे। खा. ठोकरें उनके हृदय में खिन्नता पीड़ा बहे॥ त्यों शास्त्र रूपी दीप बिन जो मोक्ष की यात्रा करे। अविवेकपूरित वे मनुज हर कदम.पर ठोकर वरे / / 5 / / शास्त्र रूप दीपक के अभाव में अदृष्ट (परोक्ष) अर्थ में पीछे दौड़ते मूढ़ मनुष्य दर-दर पग-पग पर ठोकरें खाते हैं और खिन्न होते हैं। * A man who walks in the dark, without a lamp in hand, keeps getting hurt and consequently feels depressed and frustrated. Likewise, one who aspires to walk on the path of 'Moksha' (Salvation) without the aid of the lamp of shastras finds his efforts frustrated at every step. {189)