________________ शुद्धोज्छाद्यपि शास्त्राऽऽज्ञानिरपेक्षस्य नो हितम्। . भौतहन्तुर्यथा तस्य, पदस्पर्शनिवारणम्॥ 6 // आज्ञा न माने शास्त्र की पर गौचरी सुविशुद्ध है। हितकर नहीं शुद्ध गौचरी मुनि वो तो पूर्ण अशुद्ध है। ज्यों भौत मारक को किया पद स्पर्श का नृप ने मना / विपरीत चलता शास्त्र के हितकर नहीं तस साधना // 6 // शास्त्र आज्ञा रहित स्वच्छंद मति शुद्ध गौचरी वगैरह बाह्य क्रिया करता है, पर वह हितकारक नहीं है। जैसे (राजा का) भौतमति के मारक को ऐसा आदेश देना-भौतमति के पाँव का स्पर्श मत करना। Despite feeding on daily beggings of pure food from door to door, a sadhu can not achieve exaltation if he does not pursue the intrinsic teachings of the shastras. It is as absurd as the kings order to the killer of Bhautmati not to touch his feet. {190}