________________ परिग्रहग्रहाऽऽवेशाद्दुर्भाषितरज:किराम्। श्रूयन्ते विकृताः किं न, प्रलापा लिङ्गिनामपि // 2 // परिग्रह स्वरूपी ग्रह प्रवेशे आत्म में मुनिराज भी। उत्सूत्र-भाषण धूल फेंके साक्षी सकल समाज भी॥ विकृति, भरे बकवाद सागर में परिग्रही मुनि बहे। परिग्रह से मुनि का हाल ये है, दूसरों की क्या कहें॥2॥ परिग्रह रूप ग्रह के प्रवेश से उत्सूत्र भाषण रूप धूल उड़ाते वेषधारियों का विकृत प्रलाप क्या सुनने में नहीं आता ? Do you not hear the irrational and distorted talks of even those in the garb of a mendicant when the evil influence of desire for possessions creeps into their mind. (194)