________________ आत्मसाक्षिकसद्धर्मसिद्धौ कि लोकयात्रया। तत्र प्रसन्नचन्द्रश्च, भरतश्च निदर्शनम्॥7॥ नृप प्रसन्नचन्द्र ऋषि प्रवर नृप भरत का दृष्टान्त है। निज आत्म अनुभव प्राप्त कर बनते सदा वे शान्त हैं। निज बोध दायक धर्म का वर मर्म प्राप्ति हो जिसे। नहिं कामना रहती हृदय में लोकसंज्ञा की उसे॥7॥ प्रसन्नचन्द्र राजर्षि व भरत महाराजा के दृष्टान्त से यह स्पष्ट है कि आत्म साक्षी से युक्त सत्य धर्म की सिद्धि अर्थात् प्राप्ति होने के बाद लोक व्यवहार का क्या काम है ? The lives of Rishi Prasanna Chandra and King Bharat exemplify how worldly indulgences and popularity gained thereby are redundent for those who have achieved self realization. - {183}