________________ पुर:स्थितानिवोधिस्तिर्यग्लोकविवर्तिनः / सर्वान् भावानवेक्षन्ते, ज्ञानिनः शास्त्रचक्षुषा॥2॥ ज्ञानी पुरुष श्रुत चक्षु से तीनों ही लोक निहारते। तिर्यक अधो औ ऊर्ध्व में जो हो रहा सब भासते॥ परिणाम सारे भाव को वे देखते प्रत्यक्ष सम। मुनि शास्त्र की ही आँख से देखे सदा श्रत में ही रम // 2 // ज्ञानी पुरुष शास्त्र रूप चक्षु से ऊर्ध्व, अधो व तिर्यक् लोक् में परिणमित हो रहे, सभी भावों को प्रत्यक्ष देखते हैं। The knowledgeable man, with eyes of the 'Shrutas' observe all that transpires in the three worlds of Tiryak', 'Adho' and 'Urdhva' (the lowermost, the middle and the top most planes of life) as clearly as clairvoyants observe life. on earth. .. {186}