________________ लोकमालम्ब्य कर्तव्यं, कृतं बहुभिरेव चेत्। . तंदा मिथ्यादृशां धर्मों, न त्याज्य: स्यात्कदाचन // 4 // लोकानुसारी बन बहुत नर जो करे वो सत्य है। ऐसा उचित नहीं मानना इसमें न कोई तथ्य है। यदि मान लें तो बहुत नर से आचरित जो धर्म है। मिथ्यात्वियों का धर्म फिर नहीं त्याज्य होता कर्म है।॥4॥ लोक का आलंबन लेकर यदि अधिक मनुष्यों द्वारा किया गया काम ही योग्य हो तब तो मिथ्यादृष्टि लोकों का धर्म भी त्याज्य नहीं माना जा सकता। To do what the majority does is not always a correct and sensible decision. For if it were to be so then perhaps it would not be advisable to give up the much beaten path of falsehoods and non-righteousness. {180}