________________ यथा चिन्तामणि दत्ते, बठरो बदरीफलैः। . हा हा जहाति सद्धर्म, तथैव जनरजनैः / / 2 / / ज्यों मूर्ख व्यक्ति रत्न देकर बोर ले प्रमुदित बने। त्यों लोक- रंजन में मुनि जो डूबता है हर क्षणे॥ हा ! मूढ़ कैसा है मुनि जो लोकरंजन ही करे। वो मूर्ख त्यागे धर्म को निज आत्म गुण संज्ञा हरे॥ मूर्ख व्यक्ति जिस प्रकार रत्न देकर बदले में बोर लेता है, वैसे ही मूढ़ व्यक्ति लोकरंजन के लिये सद्धर्म का त्याग कर देता हैं। Such a Muni who indulges in entertaining the masses with his powers is actually exchanging his gems for berries. For such ar muni gradually loses his spiritual' prowess and gets enmeshed in worldly indulgences. 1178)