________________ तैलपात्रधरो यद्वद्राधावेधोद्यतो यथा। क्रियास्वनन्यचित्तः स्याद्, भवभीतस्तथा मुनिः॥ 6 // कर तैल पूरित पात्र हो वह सावधान सदा रहे। जो वीर राधावेध साधे चित्त में जागृति बहे // भय हो उन्हें तलवार का त्यों जगत का मुनि को हो भय। भवभीत मुनि चारित्र में हो सावधान सदा हृदय // 6 // जिस प्रकार तेल के पात्र को धारण करने वाला, राधावेध साधने के लिये तत्पर बना व्यक्ति अपनी-अपनी क्रिया में जिस प्रकार अनन्य चित्त वाला अर्थात् पूर्ण एकाग्र चित्त हो जाता है, उसी प्रकार संसार से भय प्राप्त साधु चारित्र क्रिया में पूर्ण एकाग्र चित्त हो जाता है। As an oil-bowl courier or a sharp-shooter maintains undistracted concentration to achieve his goal so does a discerning sage, wary of the world, disciplines his heart and mind with single minded concentration. . {174}