________________ असावचरमावर्ते, धर्मं हरति पश्यतः / चरमावर्तिसाधोस्तु, छलमन्विष्य हृष्यति // 7 // यह कर्म का फल पूर्व चरमावर्त से हरता धरम / स्थिर चरम में भी देख मुनि के दोष होता हर्षतम। ऐसा परम बलवान होता कर्म का परिणाम है। कर नाश घाती कर्म का पाओ परम शिवधाम है॥7॥ यह कर्म विपाक (अंतिम पुद्गल परावर्त को छोड़कर) अन्य पुद्गल परावर्त में देखते-देखते धर्म को हर लेता है और चरम पुद्गल परावर्त में रमण करने वाले साधुजनों के भी छिद्र देखकर प्रसन्न होता है। The fruition of karma wipes out the virtues within a moment in any transitional state of matter besides the last stage. It even smiles at the faults of even the most accomplished sages who are on the verge of the final achievement. {167}