________________ योगसंन्यासतस्त्यागी, योगानप्यखिलांस्त्यजेत्। इत्येवं निर्गुणं ब्रह्म, परोक्तमुपपद्यते॥७॥ क्षायोपशमिक तजी करे फिर योग का भी निरोध हो। सब योग का भी त्याग कर दें, प्राप्त फिर निज बोध हो। कहते कि दर्शन अन्य ऐसा ब्रह्म (आत्म) निर्गुण होत है। यह बात ऐसे में घटे, लगते स्व आकर गोत है // 7 // त्यागी आत्मा अन्त में योग संन्यास से समस्त योगों का भी त्याग करता है, इस प्रकार अन्य दर्शनों में वर्णित निर्गुण ब्रह्म भी घटित हो जाता है। The soul on the path of detachment finally gets rid of all ties through spiritual practices. Thus the concept of formless and attributeless 'Brahma' of other schools is also confirmed. (63)