________________ | तृप्ति-10/ पीत्वा ज्ञानाऽमृतं भुक्त्वा, क्रियासुरलताफलम्। साम्यताम्बूलमास्वाद्य, तृप्तिं याति प्ररां मुनिः॥१॥ सद्ज्ञान रूपी पान अमृत कल्पतरु फल है क्रिया। पीकर अमी खा फल सुखद ताम्बूल समता का लिया। आस्वाद कर इनका सुहितकर तृप्त बन जाता जिया। जो तृप्त बनते साधुओं को वंदना करता हिया // 1 // ज्ञान रूप अमृत पीकर, क्रिया रूप कल्पलता के फल को खाकर, समभाव रूप ताम्बूल का आस्वाद लेकर साधु अत्यन्त तृप्ति को प्राप्त करता है। SATIETY A sadhu acquires a state of satiety on drinking the nectai of knowledge, on eating the fruits of the everlasting tree of right practices and on tasting the betel leaf of equanimity. {73}