________________ ज्योतिर्मयीव दीपस्य, क्रिया सर्वापि चिन्मयी। यस्याऽनन्यस्वभावस्य, तस्य मौनमनुत्तरम्॥8॥ ज्यों दीप की सारी क्रिया ज्योतिर्मयी होती सदा। लौ जाय ऊंची इधर तो भी तम हटावे सर्वदा॥ त्यों अन्य भाव विभाव में परिणमित जो मुनि है नहीं। अणगारता उसकी परम उत्कृष्ट शास्त्रों में कही // 8 // जिस प्राकर दीपक की सभी क्रियाएँ, (ज्योति का ऊंचा नीचा आडा टेढा होना) प्रकाशमय होती है उसी प्रकार अन्य स्वभाव में अपरिणत जिस आत्मा की सभी क्रियायें ज्ञानमय है उसका मुनित्व सर्वोत्कृष्ट है। * Just like a lamp, with its flame in no matter which direction or position, always emits light, so a sage well established in the knowledge of his soul spreads knowledge no matter what he says or does. {104}