________________ अविद्यातिमिरध्वंसे, दृशा विद्याञ्जनस्पृशा। पश्यन्ति परमात्मानमात्मन्येव हि योगिनः / / 8 // जब तम तिमिर अज्ञान का हो नाश तब योगी प्रवर। तब तत्त्व बुद्धि रूप अंजन दृष्टि होती स्पर्शकर // उस दृष्टि से निज आत्म में परमात्म का अनुभव करे। विद्या नहीं जग में तिमिर हर आत्म श्रुत किरणें भरे // 8 // अज्ञान रूप अंधकार का नाश होने पर विद्या रूप अंजन को स्पर्श करने वाली दृष्टि से योगीजन अपनी आत्मा में ही परमात्मा का दर्शन करते हैं। When the darkness of ignorance dies the kohl of knowledge sharpens the vision enabling the yogi to perceive the almighty in his soul. {112}