________________ न गोप्यं क्वापि नाऽऽरोप्यं, हेयं देयं न च क्वचित्। क्वं भयेन मुनेः स्थेयं, ज्ञेयं ज्ञानेन पश्यतः // 3 // नहिं चोर भी ले जा सके ना लूंट डाकू कर सके। नहीं गोपनीय न साधु उसको और कहिं पर रख सके। ऐसा है तत्त्व विज्ञान जो रहता हृदय में सर्वदा। ना भय उसे होता अभय है पास जिसके श्रुत सदा // 3 // जिसने ज्ञेय तत्त्व को अपने ज्ञान से देख लिया है, ऐसे मुनि को कहीं पर भी कोई भय नहीं है क्योंकि उसकी सम्पदा न गोपनीय है, न कही आरोपित करने योग्य है, न छोड़ने योग्य है, न देने योग्य Fear can never touch one who gains knowledge of the 'shrutas' for no one can steal the knowledge. It is nothing clandestine and it cannot be misplaced. In fact it remains with him forever. {131}