________________ रत्नस्त्रिभिः पवित्रा या, स्रोतोभिरिव जान्हवी। सिद्धयोगस्य साऽप्यर्हत्पदवी न दवीयसी॥ 8 // त्रय रत्न से पावन सदा ज्यों स्रोत से स्रोतस्विनी। ऐसी परम शुभ तीर्थपति पदवी समुज्ज्वल पावनी॥ मुनि सिद्ध योगी जो बने उनके लिये नहीं दूर है। अतिशीघ्र वे पद प्राप्त करते सुख जहाँ भरपूर है॥8॥ जिस प्रकार तीन प्रवाहों से पवित्र गंगा है, उसी प्रकार तीन रनों से युक्त (ज्ञान, दर्शन, चारित्र) तीर्थंकर पद भी परम निर्मल है। यह पद भी सिद्ध योगी मुनि के लिये दूर नहीं हैं। Just like the holy Ganges river is a confluence of three rivers so the stature of the Tirthankars is obtained by the acquisition of the three jewels of Right knowledge, Right perception and Right conduct. This exalted stature can be attained by a true Muni or Yogi as well. {160)