________________ निर्भय-17 - यस्य नास्ति पराऽपेक्षा, स्वभावाद्वैतगामिनः / तस्य किं न भयभ्रान्तिक्लान्तिसन्तानतानवम्॥1॥ नहीं है अपेक्षा अन्य की निज भाव मस्ती में भरा। इक में ही निज की पूर्णता जो माने वो साधु खरा॥ ... फिर हो कहाँ से क्लेश मन उसके न मन भय भ्रान्ति हो। , चित में बसे गुण अभय आत्मानंद सागर शान्ति हो // 1 // . जिसे 'पर' की कोई अपेक्षा नहीं है और जो स्वभाव की एकता में अर्थात् निज भावों में रमण करने वाला है उसे भय की भ्रांति द्वारा प्राप्त खिन्नता की परम्परा का अल्पत्व क्यों नहीं होगा ? अर्थात् उसे खिन्न होना ही नहीं पड़ेगा, क्योंकि उसे कोई भय न होगा, कोई भ्रान्ति नहीं होगी। Fearless He who has no expectations from anyone except himself and is devoid of ambiguities, and one who has directed all his thoughts and actions towards the self, is free of all fears and illusions and the resultant sorrow. {129)