________________ | अनात्म-प्रशंसा-18 गुणैर्यदि न पूर्णोऽसि, कृतमात्मप्रशंसया। गुणैरेवाऽसि पूर्णश्चेत्, कृतमात्मप्रशंसया॥1॥ यदि तूं गुणों से हीन है तो निज प्रशंसा क्यों करे ? यदि तूं गुणों से पूर्ण है तो निज प्रशंसा क्यों करे ? निज गुण प्रशंसा योग्य ना इक आत्म साधक के लिये। करता नहीं गुणगान अपना आत्म अमृत रस पिये // 1 // यदि तूं गुणों से पूर्ण नहीं है तो फिर क्यों अपनी प्रशंसा करता है ? यदि तूं गुणों से पूर्ण है तो अपनी प्रशंसा से क्या लाभ ? Humility If you do not possess any good qualities why should you praise yourself ? If you do possess good qualities you do not need to be .conceited. Self-praise is detrimental to the growth of a true Sadhu. {137}