________________ शुद्धाः प्रत्यात्मसाम्येन, पर्याया: परिभाविताः। अशुद्धश्चाऽपकृष्टत्वान्-नोत्कर्षाय महामुनेः॥ 6 // हर आत्म में नय दृष्टि से पर्याय शुद्ध समान है। होते हैं तुच्छ विभाव युत पर्याय ऐसा ज्ञान है। ऐसा परम शुभ ज्ञान जिन मुनिराज को होता यदा। पर्याय पर अभिमान उनको नहीं होता है कदा॥6॥ शुद्ध नय की दृष्टि से हर आत्मा के शुद्ध पर्याय एक समान हैं। और, अशुद्ध विभाव पर्याय निकृष्ट अर्थात् तुच्छ होने से उनके कारण 'महामुनि' अभिमान नहीं करते। .. Every soul is pure and equal from the view point of the ultimate. From the transitory angle vice and virtues are but reflections of alternative states. The * sages who acquire this knowledge are never proud of the transitory. {142}