________________ बाह्यदृष्टेः सुधासारघटिता भाति सुन्दरी। तत्त्वदृष्टस्तु सा साक्षाद्विण्मूत्रपिठरोदरी॥4॥ सुन्दर सलोनी रूपस्वामिनि सुन्दरी को देखकर। अमृत समान लगे उसे जो बाह्य दृष्टि होत नर // पर तत्त्व दृष्टि साधुनर को लगे वो ही सुन्दरी। विष्ठा प्रपूरित मूत्र पूरित चर्म घट पिठरोदरी॥4॥ बाह्य दृष्टि से देखने पर 'स्त्री' अमृत धार से युक्त सौन्दर्यवती दिखाई देती है। जबकि तत्त्व दृष्टि वाले को वही स्त्री प्रत्यक्ष विष्ठा और मूत्र के घर के समान उदर वाली लगती है। When' percieved through external eyes a woman appears to be as beautiful as a trickle of heavenly nectar. But when observed by one with spiritual insight a woman's body.appears to be nothing more than a bloated belly full of metabolic waste products. {148}