________________ | सर्व-समृद्धि-२० बाह्यदृष्टिप्रचारेषु, मुद्रितेषु महात्मनः / अन्तरेवावभासन्ते, स्फुटा:सर्वा:समृद्धयः // 1 // जब विषय सेवन आदि बाह्य स्वरूप से मन हीन हो। तब चेतना में आत्म की बज जाती सुन्दर बीन हो। ज्ञानी महात्मा आत्म में ऋद्धि समृद्धि देखते। मन बाह्य से अन्तर तरफ मोड़े अनुभव देखते // 1 // . बाह्य दृष्टि की प्रवृत्ति बंद होने पर महापुरुष अपने अन्तर में ही रम रही सर्व समृद्धियों का आभास अर्थात् बोध करते हैं। The Gandem In emancipated souls, when the interest in the outside world dwindles then spiritual awakening begins resulting in the discovery of a whole new world full of wealth and happiness within. {153}