________________ लावण्यलहरीपुण्यं, वपुः पश्यति बाहयदृक् / तत्त्वदृष्टिः श्वकाकानां, भक्ष्यं कृमिकुलाकुलम्॥ 5 // सौन्दर्य की सुन्दर तरंगों से बना ये सुघड़ तन / आसक्त नर जो बाह्य दृष्टि सोचता रहता है मन // . लेकिन सदा नर तत्त्व दृष्टि चिंतना करता है मन / कुत्ते तथा कौओं के भक्ष्य योग्य यह तन कीट घन / / 20 // 'बाह्य दृष्टि' सौन्दर्य के तरंगों से पवित्र शरीर देखता है, जबकि तत्त्व-दृष्टि कौओं तथा कुत्तों के खाने योग्य कृमि-समूह से भरा हुआ देखता है। The external eyes percieve the physical body as an embodiment of pure beauty. Wheres, the same body is percieved by those with spiritual insight as worm-infected and fit for being consumed by dogs and crows. {149)