________________ गजाश्वैर्भूपभवनं, विस्मयाय बहिर्दशः / तत्राऽश्वेभवनात्कोऽपि, भेदस्तत्त्वदृशस्तु न // 6 // गज अश्व युत नृप महल को कर देख विस्मत जो बने। नर बाह्य दृष्टि वह कहावे देह रत वह हर क्षणे॥ नृप महल वन में भेद कुल भी तत्त्व दृष्टि ना करे। सब बाह्य पुद्गल परिणति क्या महल क्या वन मन फिरे। 6 / / . बाह्य दृष्टि गज अश्व सहित राजमहल को देखकर (मुग्ध होकर) विस्मय प्राप्त करता है, जबकि तत्त्वदृष्टि को तो राजमहल में या हाथी अश्व संयुत वन में कोई अन्तर नहीं दिखाई देता। The external eyes are wonder struck at the sight of palace with elephants and horses in abundance. But one with spiritnal insight percieves such a palace as a veritable jungle full of wild animals. {150)