________________ भ्रमवाटी बहिर्दृष्टिर्भमच्छाया तदीक्षणम्। अभ्रान्तस्तत्त्वदृष्टिस्तु, नास्त्यां शेते सुखाशया॥2॥ भ्रम वाटिका है बाह्य दृष्टि प्रकाश छाया मात्र है। जो भ्रान्ति में उलझे सदा वह मुक्ति का नहीं पात्र है। वह तत्त्व दृष्टि आतमा भ्रम छांव में सोता नहीं। सुख मानता ना भ्रान्ति में वह आत्म सुख पाता सही / / 2 / / बाह्य दृष्टि तो भ्रम की वाटिका है। बाह्य दृष्टि का प्रकाशं भ्रान्ति की छाया है। परन्तु, भ्रान्ति रहित तत्त्व दृष्टि वाला साधक भ्रम की छाया में सुख की इच्छा से कभी शयन नहीं करता।। The external sight is a garden of delusions. The glow of the outward eye is an illusion. But a true sadhak (Spiritual practitioner) with spiritual insight and devoid of delusions never sleeps under the shade of delusions with a hope of achieving happiness. {146}