________________ निरपेक्षानवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तयः। योगिनो गलितोत्कर्षाऽपकर्षाऽनल्पकल्पनाः // 4 // उत्कर्ष की अपकर्ष की अति कल्पना से हीन है। उन योगियों के चित्त में चिमात्र बजती बीन है। निरपेक्ष अइवच्छिन्न" है व अनन्त ऐसा ज्ञान है। वे योगिराज बने तदा चिन्मात्रमूर्ति समान है। 8 / / जिनका स्वरूप निरपेक्ष से युक्त अर्थात् अपेक्षा रहित ज्ञानमय है और उत्कर्ष तथा अपकर्ष की कल्पनाएँ जिनकी गल गई हैं अर्थात् समाप्त हो गई हैं, योगी ऐसे होते हैं। People who are endowed withequanimtityand dwell in pure absolute knowledge remaining unaffected by the ups and downs of life, are true yogis. {144}