________________ श्रेयोद्रुमस्य मूलानि, स्वोत्कर्षाम्भःप्रवाहतः। पुण्यानि प्रकटीकुर्वन्, फलं किं समवाप्स्यसि // 2 // कल्याण रूपी वृक्ष की वर पुण्य रूपी जड़ कही। . स्वोत्कर्ष रूपी जल बहा क्यों जड़ प्रकट करता सही। जिस वक्ष की जड़ प्रकट हो जाती न फल उसमें लगे। जड़ पुण्य रूपी प्रकट हो तो कैसे निज आतम जगे।।2॥ कल्याण रूप वृक्ष की पुण्य रूप जड़ को तूं आत्म प्रशंसा रूप पानी के प्रवाह से उघाड़ रहा है, फल (ऐसा करने से) तुझे क्या लाभ होगा? .. - The tree of well being has, roots of virtues. By watering it with the water of self-praise do not expose the roots (virtues) to the general view. For a tree whose roots are exposed can not bear the fruits of knowledge of the Self. {138}