________________ चित्ते परिणतं तस्य, चात्रिमकुतो भयम्। अखण्डज्ञानराज्यस्य, तस्य साधोः कुतो भयम्॥8॥ सम्यक् चरण को भय नहीं होता किसी से सर्वदा। चारित्र ऐसा मन रमे उनका हृदय होता मदा॥ मन मानसे हो ज्ञान अक्षत फिर कहाँ से भय जगे। . सद् ज्ञान गंगा में नहाते सकल भव भय भ्रम भगे॥8॥ जिसे किसी से भी भय नहीं, ऐसा चारित्र जिसके हृदय में है, ऐसे अखंड ज्ञान रूप राज्य वाले साधु को भय कहाँ से होगा ? The one who has attained equaminity, the strength of character and bathes in the Ganges of Right knowledge, such a person is rendered totally fearless. {136}