________________ मयूरी ज्ञानदृष्टिश्चेत्, प्रसर्पति मनोवने। वेष्टनं भयसाणों, न तदानन्दचन्दनें॥5॥ मन रूप वन में ज्ञान दृष्टि मोर नृत्य करे सही। आनंद चंदन वृक्ष पर भय सर्प आ सकता नहीं। खुल गई मनुज की आत्म दृष्टि चित्त निर्भय हो गया। संसार रूपी भय हृदय से बस उसी क्षण खो गया॥5॥ ज्ञान दृष्टि रूपी मयूरी (मोर) जब मन रूप वन में मग्नपूर्वक विचरण करती है तब आनंद रूप चंदन वृक्ष को भय रूप सर्व वेष्टित नहीं कर सकते। When the peacock of knowledge dances in the jungle of the mind, then the snake of fear cannot approach the sandalwood tree of pure Bliss for then the heart is rendered fearless as the mind's vision expands. {133}