________________ आत्मन्येवात्मनः कुर्यात्, यः षट्कारकसङ्गतिम्। ... क्वाविवेकज्वरस्यास्य, वैषम्यं जडमञ्जनात्॥7॥ जो आत्म में ही आत्म के कारक छ को संबंधता। उस आतमा की पुद्गलों में हो कभी ना मग्नता // अविवेक रूपी ज्वर उसे फिर क्यों चढ़ेगी विषमता। ना ना कदापि ना चढ़े धनधन्य उसकी वीरता / / 7 // जो आत्मा में ही आत्मा के छ कारकों का संबंध करता है उसे पुद्गलों में मग्न होने से होने वाला अविवेक रूप ज्वर का वैषम्य कहाँ से होगा? One who associate the six causative indicators of the soul with soul only and nothing outside, can never be infected with the fever of inconscientiousness caused by the involvement with matter. {119}