________________ विभिन्ना अपि पन्थानः, समुद्रं सरितामिव। मध्यस्थानां परं ब्रह्म, प्राप्नुवन्त्येकमक्षयम्॥6॥ ज्यों सकल सरिताओं की धारा एक सागर से मिले। मध्यस्थ नर के पथ सभी परमात्म पद वर में मिले। जो ब्रह्म है अक्षय सदा वह एक है संसार में। मध्यस्थ सब मिल लूटते आनंद मोक्षागार में॥ 6 // मध्यस्थ पुरुषों के अलग-अलग मार्ग एक अक्षय उत्कृष्ट परमात्म स्वरूप को उसी प्रकार प्राप्त करते हैं जिस प्रकार नदियों के अलग-अलग प्रवाह समुद्र में मिल जाते हैं। As all rivers flow into the same occan, so all paths traversed by a person with equanimity lead to the omniscent. There is only one all-encompassing pure state of soul and an equanimous soul regales in such an ocean of 'Moksha'. {126}