________________ संयमास्त्रं विवेकेन, शाणेनोत्तेजितं मुनेः / धृतिधारोल्वणं कर्म-शत्रुच्छेदक्षमं भवेत् // 8 // संतोष रूपी धार से सुविवेक रूपी शाण से। मुनि ने किया है तेज अपना शस्त्र संयम भान से॥ वह शस्त्र संयम कर्म रूपी शत्रु छेद समर्थ है। जो छेदता वह धन्य बाकी सर्व जीवन व्यर्थ है / / 8 // विवेक रूप शाण द्वारा अत्यन्त तीक्ष्ण किया हुआ तथा धैर्य रूप धार से उग्र किया हुआ मुनि का संयम रूप शस्त्र कर्म रूप शत्रु का नाश करने में समर्थ होता हैं। The sword of discipline of a sage, that has been sharpened on the grinding wheel of conscientiousness and honed with the stone of patience is capable of slaying the enemy in the form of karma. {120)