________________ इच्छन्न परमान् भावान् विवेकाद्रेपलत्यधः। . परमं भावमन्विच्छन्नाऽविवेके निमज्जति // 6 // इच्छा नहीं है मैं परम शुद्ध भाव को पाऊं मुदा / वह शुद्ध भाव विवेक गिरि से गिरे नीचे सर्वदा // जो चाहता मन में सदा हर पल परम निज भाव को। अविवेक में पड़ता नहीं वह प्राप्त कर शिवछांव को / / 6 / / परमभाव अर्थात् आत्मा के शुद्ध गुणों को नहीं चाहने वाला आत्मा विवेक रूप पर्वत से नीचे गिर जाता है ओर परमभाव को खोजने वाला आत्मा अविवेक में निमग्न नहीं बनता। If one does not desire the ultimate purity he falls down from the heights of conscientiousness. And he who craves for the ultimate is not engulfed by unconscientiousness. {118}