________________ विवेक-15 / कर्मजीवं च संश्लिष्टं, सर्वदा क्षीरनीरवत्। विभिन्नीकुरुते योऽसौ, मुनिहंसो विवेकवान्॥1॥ ज्यों दूध जल को अलग करता हंस प्राणी सर्वदा। त्यों कर्म चेतन को अलग करते मुनीश्वर हो मुदा। वे साधु कहलाते जगत में हंस सम निर्मल विमल। ज्ञानी विवेकी साधु वे होते रहित अध कर्म मल // 1 // हमेशा दूध और पानी के समान मिले हुए जीव और कर्म को जो मुनि रूप हंस अलग करता है वही विवेकी है। THE CAPACITY TO DISCERN The swan like Muni who separates the Being and Karma which are mixed like milk and water, truly is the discerning sage. {113}