________________ शुद्धेऽपि व्योम्नि तिमिराद् रेखाभिमिश्रता यथा। विकारैर्भिश्रता भाति, तथाऽऽत्मन्यविवेकतः // 3 // आकाश है सुविशुद्ध पर तम रेख से मिश्रित लगे। नीलादि रेखाएँ हमारे नेत्र को मन को ठगे। अविवेक कारण से निजात्म विकास से मिश्रित लगे। खुल जाय दृष्टि विवेक की तो भाव शुद्धातम जगे॥3॥ जिस प्रकार तिमिर रोग होने से स्वच्छ आकाश में भी नील पीत रेखाओं द्वारा मिश्रत्व भासित होता है उसी प्रकार आत्मा में अविवेक के कारण से विकारों द्वारा मिश्रत्व भासित होता है। Just as night blindness results in sighting dark lines even in a clear blue sky, likewise due to non conscientious behaviour and thoughts the soul appears to be tarnished & corrupted when in reality that is just an illusion. {115}