________________ शुचीन्यप्यशुचीकर्तु, समर्थेऽशुचिसम्भवे। :देहे जलादिना शौचभ्रमो मूढस्य दारुणः // 4 // उत्पन्न अशुचि में हुआ इस देह का क्या अर्थ है। शुचि तत्त्व को अपवित्र करने में ये काय समर्थ है। फिर भी पुरुष हो मूढ़ जल से साफ करता है सदा। अपवित्र है पर पवित्रता का भ्रम भयंकर हो तदा // 4 // पवित्र पदार्थ का अपवित्र करने में समर्थ और अपवित्र पदार्थ में उत्पन्न ऐसे शरीर को पानी आदि से पवित्र करने का मूढ आत्माओं का भ्रम भयंकर है। The superstitious belief of such fools who think they can transform pure substances into impure substances and impure physical bodies into pure states just by sprinkling water or some such substance, is a dangerous thing. {108}