________________ तरङ्गतरलां लक्ष्मीमायुर्वायुवदस्थिरम्। अदभ्रंधीरनुध्यायेदभ्रवद्भगुरं वपुः // 3 // निपुणज्ञ धन को चपल माने ज्यों समुद्र तरंग है। अस्थिर उमर है वायु सम बादल समा वपु अंग है। बादल विनाशी तन विनाशी उम्र धन भी स्थिर नहीं। हो चिंतना तो आत्म को हो जन्म लेना फिर नहीं॥3॥ निपुण बुद्धि वाला लक्ष्मी को समुद्री-तरंगों के समान चंचल, आयुष्य को वायु के समान अस्थिर और शरीर को बादल के समान नश्वर विचारता है। An intelligent person considers Laxmi, the goddess of wealth, to be as frivolous as the sea-waves; the life span as unpredictable as the wind, and the body as transitory as the clouds. . {107}