________________ यः पश्यन्नित्यमात्मानमनित्यं परसङ्गमम्। छलं लब्धुं न शक्नोति, तस्य मोहमलिम्लुचः // 2 // निज आत्म के अविनाश रूप स्वरूप को जो देखता। पर वस्तु के संबंध को नश्वर स्वरूपे देखता॥ उस शुद्ध ज्ञान विधान में छल प्राप्त करना शक्य ना। छल प्राप्ति में यह मोह रूपी चोर होत समर्थना / / 2 / / जो आत्मा को सदा नित्य देखता है और पर वस्तु के सम्बन्धों को अनित्य देखता है उसके छिद्र प्राप्त करने में मोह रूप चोर समर्थ नहीं हो सकता। Those who recognize the indestructibility of the soul and the ephemeral nature of the material world are truly knowledgeable. Fondness, the thief, is incapable of finding holes in the character of such people and cannot seep into them. {106)