________________ यथा शोफस्य पुष्टत्वं, यथा वा वध्यमण्डनम्। तथा जानन्भवोन्मादमात्मतृप्तो मुनिर्भवेत्॥6॥ संसार है कैसा कुरूपी जानता है मुनि प्रवर। ज्यों पुष्टता सूजन तथा मानित बने वध योग्य नर / संसार के उन्माद भावों को मुनि पहचानता। पहिचान कर जिन आत्म भाव प्रदेश रस नित चाखता॥6॥ जिस प्रकार सूजन आ जाने से पुष्ट हो जाने की कल्पना करे अथवा वध करने योग्य पुरुष को माला पहनाने से वह गौरव की कल्पना करे। संसार का उन्माद ऐसा ही है इसलिए ऐसे उन्माद को जानने वाले मुनि आत्मा के विषय में संतुष्ट रहते हैं Just like a flabby body need not be healthy and a garlanded man, prepared for the sacrificial altar, is not to be envied, so a sage knows that this vivacious world is actually full of miseries and thus he remains content with his soul and his 'self'. {102}