________________ तथा यतो न शुद्धात्मस्वभावाऽऽचरणं भवेत्। फलं दोषनिवृत्तिर्वा, न तद् ज्ञानं न दर्शनम्॥5॥ जिससे निजातम शुद्ध निजभावों में हो ना रमणता। अथवा निवृत्ति दोष की ना हो जरा भी शुद्धता॥ परिणाम कुछ भी हो नहीं, वह ज्ञान कैसा है सही। आभास दर्शन ज्ञान का पर ज्ञान दर्शन है नहीं॥5॥ वैसे ही जिससे शुद्ध आत्म-स्वभाव का आचरण अथवा दोष निवृत्ति रूप फल नहीं मिलता वह न तो ज्ञान है और न दर्शन है। Similarly, that which does not lead to pursuits of the self or purification of inner faults is neither true perception nor true knowledge. {101)