________________ चारित्रमात्मचरणाद, ज्ञानं वा दर्शनं मुनेः। शुद्धज्ञाननये साध्यं, क्रियालाभात् क्रियानंये॥ 3 // शुद्ध ज्ञान नय से ज्ञान दर्शन चरण ऐसे साध्य है। जो आत्म में रमता सदा आत्मा परम आराध्य है। जो शुद्ध किरिया करे नय किरिया.से त्रिपुटी प्राप्त है। जो शुद्ध संयम पालते तिरते कहें यो आप्त है।। 3 / / आत्मा में आचरण से चरित्र है ऐसे शुद्ध ज्ञान नय के अभिप्राय से ज्ञान और दर्शन मुनि के साध्य हैं। क्रिया नय के अभिप्राय से ज्ञान के फल रूप क्रिया के लाभ से साध्य रूप है। True conduct is delving in the soul. From the view point of such pure knowledge the goal of a sage is perception and knowledge. From the view point of action the goal is the benefits drawn from the actions .guided by pure knowledge.. {99}