________________ यतः प्रवृत्तिर्न मणौ, लभ्यते वा न तत्फलम्। अतात्त्विकी मणिज्ञप्तिर्मणिश्रद्धा च सा यथा॥ 4 // . मा मणि प्राप्ति की न प्रवृत्ति है न प्रवृत्ति का परिणाम है। "मणि है यही" यह ज्ञान श्रद्धा झूठ है निष्काम है। जो जानकर उपलब्ध करने की प्रवृत्ति को करे। कर प्राप्त कर उपयोग श्रद्धा ज्ञान सत्य हृदय भरे॥4॥ जिससे न तो मणि में प्रवृत्ति हो और न उस प्रवृत्ति का फल प्राप्त होता हो ऐसे अवास्तविक मणि का ज्ञान और मणि की श्रद्धा जैसी होती है। As the knowledge of and faith in a non-existent jewel neither inspires one to obtain it nor can it be obtained. {100}