________________ गुणवड्यै ततः कुर्यात्, क्रियामस्खलनाय वा। एकं तु संयमस्थांनं, जिनानामवतिष्ठते॥७॥ गुण वृद्धि करने के लिये अस्खलित रहने के लिये। किरिया करो करते रहो, त्यों सहस श्रुत जलते दिये। है एक संयम स्थान केवल केवली जिन के लिये। बाकी सभी किरिया करो निज बोध पाने के लिये॥७॥ इसलिए गुण की वृद्धि के लिये अथवा उत्पन्न भाव गिर न जाय इसलिए क्रिया करनी चाहिये। एक संयम का स्थान तो केवल ज्ञानी को ही रहता है। Only the omniscient (Kevali) reaches the state of untarnishable absolute purity, so all other seekers should indulge in right practices for qualitative enhancement as well as for maintaining the attained level of purity.. (71)