________________ छिन्दन्ति ज्ञानदात्रेण, स्पृहाविषलतां बुधाः / मुखशोषं च मूर्छा, दैन्यं यच्छति यत्फलम् // 3 // विष तरु स्पृहा है दैन्यता मुख शोष मूर्छा फल विकट / ज्यों जहर भक्षण के ये फल है स्पृहा भी है जहर घट॥ पंडित चतुर श्रुत शस्त्र से विष वेल स्पृहा को छेदते। निस्पृह बने निष्काम हो निज आत्म अनुभव वेदते // 3 // मुखशोष (मुँह का सूखना), मूर्छा और दीनता रूप फल देने वाली लालसा रूप विषलता को अध्यात्म ज्ञानी पंडित लोग ज्ञान रूप हाँसिये छेदते हैं। Attachment is like a poison-tree under which one gets a parched mouth and unconciousness. Therefore the Enlightened fell this tree of attachment with the axe of knowledge and they prefer to remain non-attached and nonchalant. {91}