________________ गौरवं पौरवन्द्यत्वात्, प्रकृष्टत्वं प्रतिष्ठया। ख्याति जातिगुणात्स्वस्य, प्रादुष्कुर्यान्न नि:स्पृहः // 6 // जो है स्पहा विरहित मनि वो यों कभी कहता नहीं। अपनी प्रतिष्ठा ख्याति अपने शब्द से करता नहीं। मैं उच्च जातिवान हूँ मैं पूज्य हूँ पुर के लिये। मैं हूँ प्रतिष्ठित और मैंने काम क्या कितने किये॥६॥ स्पृहा रहित साधु नगरवासियों द्वारा वन्दनीय होने पर भी अपना बड़प्पन, अपनी प्रतिष्ठा, ख्याति और उत्तम जातीयता आदि गुणों से अपनी प्रसिद्धि प्रकट नहीं करे। A sage who is truly detached never blows his own trumpet and never shows off his fame or talents even though he is praised and revered by the townsfolk. '{94}