________________ | निःस्पृह-12 Home m ememommoment स्वभावलाभात् किमपि, प्राप्तव्यं नाऽवशिष्यते। इत्यात्मैश्वर्यसम्पन्नो, निःस्पृहो जायते मुनिः॥१॥ निज शुद्ध चेतन. आत्म भाव लहुं लहुं तल्लीनता। कुछ और न मुझे चाहिये चाहुं स्वभाव अदीनता // ऐसा परम निर्मल सहज शुभ सरल जो अणगार है। निज आत्म का ऐश्वर्य पा निस्पृह करे भवपार हैं // 1 // आत्म स्वभाव की प्राप्ति के अलावा और कुछ भी प्राप्त करने योग्य शेष नहीं रहता, इस प्रकार के आत्म-ऐश्वर्य से सम्पन्न साधु निःस्पृह होता है। The Detached One who is steadfastly pursuing self-realization for him nothing else matters and thus he is nonchalant towards the material world. {89