________________ पुद्गलैः पुद्गलास्तृप्ति, यान्त्यात्मा पुनरात्मना। . परतृप्तिसमारोपो, ज्ञानिनस्तन्न युज्यते // 5 // आत्मा बने परितृप्त आत्मिक भाव गुण से ही सदा। पुद्गल बने परितृप्त पुद्गल रूप से ही सर्वदा॥ जो तृप्ति पुद्गल से हो उससे आत्म निज तृप्ति वरे। पर द्रव्य का पर द्रव्य में आरोप ज्ञानी ना करे॥५॥ पुद्गलों के द्वारा पुद्गल तृप्ति प्राप्त करते हैं और आत्मा गुणों के द्वारा आत्मा तृप्त होती है। इस कारण से पुद्गल तृप्ति में आत्म-तृप्ति घटित नहीं होती ऐसा ज्ञानियों का अनुभव है। Material particles can derive satisfaction only through material particles and the soul attains satisfaction by gaining the virtues of the soul. Thus the all knowing sadhu never expects to achieve. satisfaction of the soul through material gains. . {77}