________________ मधुराज्यमहाशाकाऽग्राह्ये बाह्ये च गोरसात्। परब्रह्माणि तृप्तिर्या जनास्तां जानतेऽपि न॥६॥ घी शाक उत्तम फलादिक से पयादिक से भिन्न है। पर ब्रह्म में जो तृप्ति हैं वह तृप्ति पर अवच्छिन्न है। उस तृप्ति की अनुभूतियाँ नर अज्ञ कैसे पा सकें। . पर द्रव्य आसक्ति मिटे तो तृप्ति अनुभव रस चखे // 6 // सुन्दर राज्य में बड़ी आशा जिनको है ऐसे पुरुषों द्वारा प्राप्त न हो सके ऐसे वाणी से अगोचर परमात्मा के विषय में जो तृप्ति होती है उसे लोक जानते भी नहीं हैं। . The satiety acquired from the transcendental is indestructible and inexplicable. Those who crave for fruits, honey milk, Kingdom etc, cannot even conceive that satiety that is beyond words. ... {78}